उसका सौंधापन खो गया है,
कच्चे घर के बगल की चौपाल का बरगद,
अब अकेले बूढ़े की तरह नज़र आता है,
झुलसी हुई हवा के झोंके मैं
अधजले पेट्रोल की महक आती है,
गाँव की छाती चीर अब बना दिया है
भड़भड़ाती गाड़ियों के लिए रास्ता.
काले रंग के उस नाग पर से
निकलता रहता है ज़हरीला धुआ
रोज ज़मीन का सीना नापते अफ़सर
ओर नोट गिनते ये मां के लाल किसान
अब वहाँ खेती होती है कॉंक्रीट की,
ओर फ़ासले उगती हैउन इंसानो की
जो अंजान है अपने रीति रिवाओं से
रास्ते पर कोई नहीं कहता
घर पर सब कैसे है,
तुम कौन ओर मैं कौन,
शराब की बोतल मैं डूबे सभी बूडे जवान
मंदिर की जगह अब डिस्को बन जाएगा
और भजन की जगह होंगे कूल्हे मॅटकाते लोग,
इसको गाँव को सज़ा मिली है ,
अपने शहर के करीब होने की,
मल्लिका
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