Sunday, May 3, 2009

जिंदगी का क्रिकेट

क्रिकेट के मैदान पर भागती हुई जिंदगी,
एक एक रन के लिए बढ़ता हुआ तनाव,  

अपने बोनस का छक्का  
अभी अभी महंगाई ने 
बाउंड्री पर लपक लिया है,  

लोकल के धक्के से उतरकर,  
सब्जी वाले से मचमच करता हुया 
लग रहा है अपने नॉट आउट
होने की अपील कर रहा है  

कॉलेज से सभी ने सोचा था 
इतना पढ़ा लिखा है 
ज़रूर जिंदगी मैं बहुत सेंचुरी लगाएगा 
लेकिन किस्मत का क्या भरोसा,  

इस सरकारी नौकरी ने 
रणजी का प्लेयर बना डाला, 
कितनी बार मेन ऑफ द मॅच बना 
पर प्रमोशन नहीं मिला  

आज भी रोज,  
नयी इन्निंग खेलने जाता है 
अक्सर एक्सट्रा प्लेयर बनकर, 
सिर झुकाए शाम को घर आ जाता है,

मल्लिका

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